म्योर उत्तराखंड ब्लॉग सेवा ...

दैनिक समाचार एवं सूचना . . .

आइये, जाने, समझें और जुडें अपने पहाड़ से, अपने उत्तराखण्ड से . . .

Saturday, September 3, 2011

नंदा देवी डोला, नंदा देवी मेला महोत्सव, २०११

ऐतिहासिक नंदादेवी महोत्सव की तैयारियां शुरू . . .

“उत्तराखण्ड में आस्था और विश्वास के साथ मनाए जाने वाले नंदा देवी मेला 
महोत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं।“

आदिशक्ति नंदादेवी का पवित्र धाम उत्तराखंड को ही माना जाता हैचमोली के घाट ब्लॉक में स्थित कुरड़ गांव को उनका मायका और थराली बलॉक में स्थित देवराडा को उनकी ससुराल.जिस तरह आम पहाड़ी बेटियां हर वर्ष ससुराल जाती हैं, माना जाता है कि उसी संस्कृति का प्रतीक नंदादेवी भी 6 महीने ससुराल औऱ 6 महीने मायके में रहती हैं

उत्तराखंड के लोग अपनी इष्टदेवी की विशेष पूजा भाद्रपक्ष शुक्ल पक्ष की अष्टमी को करते हैं
उत्तराखंड में गढ़वाल के पंवार राजाओं की भांति कुमांऊ के चन्द राजाओं की कुलदेवी भी नंदादेवी ही थीं इसलिये दोनों ही मंडलो के लोग नन्दा देवी के उपासक हैं

परंपरा के अनुसार परिवार में अपने ध्याणौं बहनों,बूआ औऱ बेटियों को नन्दादेवी का प्रतीक माना जाता है. हर वर्ष होनेवाली नंदादेवी की इस डोली को छोटी नंदाजात भी कहते हैं और नंदा महा राजजात हर 12 साल में आयोजित होती है. अगली नंदा महाराजजात 2012 में होनेवाली है

Thursday, April 21, 2011

उत्तराखंड संस्कृति की प्रमुख लोक कला `ऐपण' (Aipan)

उत्तराखंड कला एपण Uttarakhand Art Aipan
मेरो पहाड़ के सभी साथियों को योगेश की नमस्कार !
जैसा की आप लोगो को पता ही है की हमारी संस्कृति में विभिन्न प्रकार की लोक कलाएं मौजूद है उन्ही में से एक प्रमुख कला है एपण (Aipan) जो की आज की आज समाज में एक कला बनकर ही अपितु एक उधोग के रूप में भी प्रकाशित हो रही हैजिसने कई बेरोज़गारो को रोज़गार की राह दिखाई है
"अपनी कला द्वारा अपना जीवन निर्वाह करने वाला इंसान ही व्यवसायिक कहलाता है।"
कुमाऊं सांस्कृतिक
ऐपण (Aipan) कला परिचय
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पहुंचे कुमाऊं के ऐपण (Aipan) कुमाऊं के 'लोक' से स्थानीय बाजारों तक पहुंची लोक कला-ऐपण। वर्तमान में हमारी लोककला एपण का पर्दार्पण अंतर्राष्ट्रीय बाजार बाज़ार में भी हो चुका है आजकल ऐपण के रेडीमैड स्टीकर भी प्रचलन में हैं।
Aipan (ऐपण)
लोक कला की परंपरा को बनाए रखने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है

कुमाऊं की स्थानीय चित्रकला की शैली को एपण के रूप में जाना जाता है मुख्यतया उत्तराखंड में शुभ अवसरों पर बनायीं जाने वाली रंगोली को ऐपण (Aipan) कहते हैं। ऐपण कई तरह के डिजायनों से पूर्ण होता है फुर्तीला उंगलियों और हथेलियों का प्रयोग करके अतीत की घटनाओं, शैलियों, अपने भाव विचारों और सौंदर्य मूल्यों पर विचार कर इन्हें संरक्षित किया जाता है। 

ऐपण (Aipan) के मुख्य डिजायन -चौखाने , चौपड़ , चाँद , सूरज , स्वस्तिक , गणेश ,फूल-पत्ती, बसंत्धारे,पो, तथा इस्तेमाल के बर्तन का रूपांकन आदि शामिल हैं। ऐपण के कुछ डिजायन अवसरों के अनुसार भी होते हैं।
एपण (Aipan) बनाने की विधि
गाँव घरो में तो आज भी हाथ से एपण तेयार कियें जातें है। ऐपण बनने के लिए गेरू तथा चावल के विस्वार (चावल को भीगा के पीस के बनाया जाता है ) का प्रयोग किया जाता है। समारोहों और त्योहारों के दौरान महिलाएं आमतौर पर एपण को फर्श पर, दीवारों को सजाकर, प्रवेश द्वार, रसोई की दीवारों, पूजा कक्ष और विशेष रूप से देवी देवताओं मंदिर के फर्श पर कुछ कर्मकाण्डो के आकड़ो के साथ सजाती है
कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं ने एपण कला को जीवित रखने का प्रयास किया है। ग्रामीण अंचलों में यह परंपरा काफी समृद्ध है। संस्थाये ऐंपण कला सिखाने के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण शिविर लगाती रहती है। प्रमुख रूप से इसमें महिलाओं को लक्ष्मी चौकी, विवाह चौकी (जिसें दुल्हेर्ग कहा जाता है), दिवाली की चौकी तैयार करने के तरीके सिखाए जाते हैं।
जिनमें से कुछ इस तरह बनाएं जातें हैजैसा की नीचें चित्रों में प्रदर्शित किया गया है

Aipan

Aipan










Wednesday, March 16, 2011

"होली के रंग मेरो पहाड़ संग"

आप सभी को होली की रंग भरी शुभकामनायें 

उत्तराखंड कुमांऊनी होली: सतरंगी रंगों से सराबोर
कुछ प्रमुख होलियां जो की अक्सर गुगुनाने को दिल करता है . . .

फिर होली में बात ही कुछ और होती है . . .

बलमा घर आये कौन दिना. सजना घर आये कौन दिना…
मेरे बलम के तीन शहर हैं
मेरे बलम के तीन शहर हैं
दिल्ली, आगरा और पटना..
बलमा घर आये कौन दिना. बलमा घर आये कौन दिना .. सजना घर आये कौन दिना।
 
मेरे बलम की तीन रानियां – २
मेरे बलम की तीन रानियां
पूनम, रेखा और सलमा 
बलमा घर आये कौन दिना. बलमा घर आये कौन दिना .. सजना घर आये कौन दिना।
मेरे बलम के तीन ठिकाने
मेरे बलम के तीन ठिकानेघर, ऑफिस और दारू का भट्टा 
बलमा घर आये कौन दिना. बलमा घर आये कौन दिना .. सजना घर आये कौन दिना।

इसके अलावा एक और होली जो प्रमुख रूप से गायी जाती है वह है. . .   
 
रंग में होली कैसे खेलूं री मैं सांवरियां के संग….
अबीर उड़ता गुलाल उड़ता, उड़ते सातों रंग…सखी री उड़ते सातों रंग
भर पिचकारी ऐसी मारी, अंगियां हो गयी तंग…
रंग में होली कैसे खेलूं री मैं सांवरियां के संग….
तबला बाजे, सारंगी बाजे, और बाजे मिरदंग…सखी री और बाजे मिरदंग
कान्हा जी की बंसी बाजे, राधा जी के संग…
रंग में होली कैसे खेलूं री मैं सांवरियां के संग….
कोरे कोरे माट मंगाये, तापर घोला रंग, सखी री तापर घोला रंग
भर पिचकारी सनमुख मारी, अंखिंया हो गयी बंद…
रंग में होली कैसे खेलूं री मैं सांवरियां के संग….
लंहगा तेरा घूम घुमेला, चोली तेरी तंग
खसम तुम्हारे बड़ निकट्ठू , चलो हमारे संग
रंग में होली कैसे खेलूं री मैं सांवरियां के संग…. 

एक होली है जो की महिलाओं की प्रमुख होली है . . .

जल कैसे भरूं जमुना गहरी,
जल कैसे भरूं जमुना गहरी,
ठाड़े भरूं राजा राम देखत हैं,
बैठी  भरूं  भीजे  चुनरी.
जल कैसे भरूं जमुना गहरी.
धीरे चलूं घर सास बुरी है,   
धमकि चलूं छ्लके गगरी.
जल कैसे भरूं जमुना गहरी.
गोदी में बालक सर पर गागर,
परवत से उतरी गोरी.
जल कैसे भरूं जमुना गहरी.


 

Monday, February 21, 2011

अपनी बात: कुमाऊं के देवी-देवता

अपनी बात: कुमाऊं के देवी-देवता: "उत्तर में उत्तुंग हिमाच्छादित नन्दादेवी, नन्दाकोट, त्रिशूल की सुरम्य पर्वत मालाएं हैं। पूर्व में पशुपति नाथ का सुन्दर नेपाल है। पश्चिम में त..."

कृपया यहाँ खोजे

सुन्दर अल्मोड़ा, शिक्षित अल्मोड़ा,जानियें अपने शहर के बारें में और भी बहुत कुछ .....

अल्मोड़ा, उत्तराखंड देवताओं की धरती ‘देवभूमि’

इतिहास


आज के इतिहासकारों की मान्यता है कि सन् १५६३ ई. में चंदवंश के राजा बालो कल्याणचंद ने आलमनगर के नाम से इस नगर को बसाया था। चंदवंश की पहले राजधानी चम्पावत थी। कल्याणचंद ने इस स्थान के महत्व को भली-भाँति समझा। तभी उन्होंने चम्पावत से बदलकर इस आलमनगर (अल्मोड़ा) को अपनी राजधानी बनाया।

सन् १५६३ से लेकर १७९० ई. तक अल्मोड़ा का धार्मिक भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व कई दिशाओं में अग्रणीय रहा। इसी बीच कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक एवं राजनैतिक घटनाएँ भी घटीं। साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टियों से भी अल्मोड़ा सम्स्त कुमाऊँ अंचल का प्रतिनिधित्व करता रहा।

सन् १७९० ई. से गोरखाओं का आक्रमण कुमाऊँ अंचल में होने लगा था। गोरखाओं ने कुमाऊँ तथा गढ़वाल पर आक्रमण ही नहीं किया बल्कि अपना राज्य भी स्थापित किया। सन् १८१६ ई. में अंग्रेजो की मदद से गोरखा पराजित हुए और इस क्षेत्र में अंग्रेजों का राज्य स्थापित हो गया।

स्वतंत्रता की लड़ाई में भी अल्मोड़ा के विशेष योगदान रहा है। शिक्षा, कला एवं संस्कृति के उत्थान में अल्मोड़ा का विशेष हाथ रहा है।

कुमाऊँनी संस्कृति की असली छाप अल्मोड़ा में ही मिलती है - अत: कुमाऊँ के सभी नगरों में अल्मोड़ा ही सभी दृष्टियों से बड़ा है।




हमारी संस्कृति

हमारी संस्कृति
हर औरत का गहना उसका श्रींगार

नंदा देवी अल्मोड़ा

नंदा देवी अल्मोड़ा
नंदा देवी अल्मोड़ा

बौध मंदिर देहरादून

बौध मंदिर देहरादून
बौध मंदिर देहरादून

राम झुला ऋषिकेश

राम झुला ऋषिकेश
राम झुला ऋषिकेश

फोटो गैलेरी

1 2 3 4 5 6 7 8 9 ... «Previous Next»

सौंदर्य को देखने के लिए संवेदनशीलता चाहिए । प्रकृति में सौंदर्य भरा पड़ा है ।...

चलो अल्मोड़ा चलें ...
प्राकर्तिक सौंदर्य एवं सुन्दरता की एक झलक


मौसम का सुन्दर नजारा


छोलिया नृत्य - इस अंचल का सबसे अधिक चहेता नृत्य 'छौलिया' है


"चितय गोल ज्यू कुमाऊं में न्याय देवता के रूप में पूजे जाते हैं गोल ज्यू"


कोणार्क के सूर्य मन्दिर के बाद कटारमल का यह सूर्य मन्दिर दर्शनीय है.


देवभूमि के ऐसे ही रमणीय स्थानों में बाबा नीम करोली महाराज का कैची धाम है.


जागेश्वर उत्तराखंड का मशहूर तीर्थस्थान माना जाता है। यहां पे 8 वीं सदी के बने 124 शिव मंदिरों का समूह है जो अपने शिल्प के लिये खासे मशहूर हैं। इस स्थान में सावन के महीने में शिव की पूजा करना अच्छा माना जाता है। अल्मोड़ा से जागेश्वर की दूरी लगभग 34 किमी. की है।http://images.travelpod.com/users/kailashi/2.1230046200.jageshwar-temple.jpg

http://images.travelpod.com/users/kailashi/2.1230046200.deodar.jpg
अल्मोड़ा की प्रसिद्ध परंपरागत बाल मिठाई.


यह मशहूर “सिंगोड़ी” (अल्मोड़ा की एक प्रसिद्ध मिठाई)
ये एक तरह का पेडा होता है जिसे मावे से बनाया जाता है। फोटो में आप जो पान जैसी मिठाई देख रहे हैं वही है सिंगोड़ी। दरअसल इस मिठाई की खासियत ये है कि इसे सिंगोड़ी के पत्ते में लपेटकर रखा जाता है।
इस मिठाई को बनाने के लिए पेडे को नौ से दस घंटे तक पत्ते में लपेट कर रखा जाता है।जिसके बाद पत्ते की खुशबु पेडे में आ जाती है। यही खुशबु इस मिठाई की पहचान है।


विश्वविद्यालय से न्यू इन्द्र कालोनी खत्याड़ी अल्मोड़ा का परिद्रिश्य.


"इन्द्रधनुस" सुरूज की किरण जब पानी की बूंद लेकर के गुजरे तब वो किरण अपने सात रंग की छटा ले इन्द्रधनुस के रूप में उभरती है | यह अदभुत नजारा देखें बिना आप नहीं रह सकते |

मुख पृष्ठ | पहाड़-खबर | हाई अलर्ट | शेयर बाजार | चुनाव|व्यापार | आईटी | युद्ध की आहट| चुनाव | मंडी | देशभर की | और भी बहुत कुछ